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‘साधना’ एक दार्शनिक एवं व्यापक संदर्भ शब्द

‘साधना’ हिन्दी, संस्कृत या भारत की वज्रयानी नामक बुद्धत्व की शाखा से जुड़ा हुआ एवं आज भी एक अत्यंत असीम संभावनाओं को लिए हुए शब्द है, जिसका पूर्ववर्ती प्रयोग सामान्यतः केवल धम्म, धर्म या एक सात्विक चिंतन प्रवाह को अधिक समय तक बनाए रखने के लिए किया जाता था, किन्तु पूर्व समय के कुछ लोग जीवनभर भी इस शब्द से मिलने वाले आत्मिक सम्मान या इस शब्द से स्वयं को अनन्य कारणों से ‘अभिभूत या मंत्रमुग्ध’ (Mesmerized) पाते थे, जिसमे तमाम भारतीय उप महाद्वीप के राज्यों, जनपदों के अंतर्गत आने वाले जनसामान्य से प्राप्त होने वाला स्नेह आदि एवं सहज ज्ञान की प्राप्ति की ओर उन्मुखता भी कुछ ऐसे कारक हैं जो इस बात की ओर दृढ़ता से बल देते हैं।

‘साधना’ का एक उद्देश्य आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार भी माना जा सकता है, अन्य शब्दों मे इस शब्द की सीमाओं मे बहुत कुछ ऐसा भी समाता है, जो संभवतः पूर्ण रुपेण सात्विक अभिलाषाओं को अपने मे समेटे हुए नही है, जैसे प्राचीन भारतीय मंत्र या विस्तारित अर्थों मे रहस्य विज्ञान की परिधि मे आने वाले वो कर्म जो किसी भी अर्थ मे सात्विक मनोभावों की ओर से जगे या उत्पन्न नही हुए हैं, जिन मनोभावों का प्रयोजन कभी रजोगुणी या सामान्यतः तमोगुणी इच्छाओं से लिया जा सकता है, अवश्य अब ‘साधना’ शब्द की असीमता का अंदाज़ा पाठकों को हो रहा होगा के जनसमूहों के कितने बड़े वर्ग या अन्य शब्दों मे सर्वांग जनसमूह को ही ये शब्द संबोधित कर रहा है। वर्तमान संदर्भों मे आपका संबंद्ध किसी भी ‘दर्शन'(Philosophies) धर्म, ‘विचारधारा'(Belief System) आदि से हो, किन्तु यदि आप किसी लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो आपकों उन लक्ष्यों की ओर उन्मुखता, चैतन्यता, या जागृत चिंतन के अतिरिक्त कुछ भौतिक अभौतिक साधनाओं की आवश्यकता पड़ सकती है, अब यदि आपका चिंतन या दर्शन निकृष्ट प्रवृतियों को लिए हुए है तो आप तमाम वैज्ञानिक, अवैज्ञानिक सात्विक पद्धतियों के अतिरिक्त कई बार उन साधना पथ पे अग्रसर या अग्रणी लोगों का सहारा ले सकते हैं, जो आपको तमाम निकृष्ट दुनियावी इच्छाओं की ओर शीघ्रता से लेकर जा सकता है या आपको ऐसी तात्कालिक संतुष्टि लाकर दे सकता है जिससे आप की न्यून चेतना के आयाम को कुछ समय ऐसा लग सकता है, के आप किसी प्रतियोगी अवस्था मे आगे हैं या आगे बढ़ रहें हैं, आपके पास दुनियावी धन के अंबार लग रहे हैं और आप तमाम सात्विक चिंतन की ओर अग्रणी ऋषि संज्ञक जीवित अजीवित आत्माओं से श्रेष्ठतर प्रदर्शन उन तमाम क्षेत्रों मे कर रहें हैं जिन क्षेत्रों मे उन लोगों का चिंतन कभी कभार या कभी नहीं जाता है, इसी प्रकार आप तमाम उन लोगों से भी बेहतर प्रदर्शन कर रहें हैं जो तमाम राजसी इच्छाओं मे अब तक अग्रणी रहें हैं, और ये सब केवल इसलिए संभव हो पा रहा है, क्योंकि आपकी स्वयं की साधना पद्धति या निकृष्ट अधम साधनाओं के मार्ग पे अग्रसर श्रेठ विद्वता ऐसा संभव किए दे रही है।

और ऐसे सब मनोभाव इसलिए सामाजिक स्वीकार्यता के केंद्र मे होते हैं, क्योंकि ये मानव जीवन की बहुत सी या तमाम बुनियादी आवश्यकताओं को केंद्र मे लिए होते हैं। अन्य शब्दों मे त्रिगुणों मे समा सकने वाले लगभग हर मनोभाव कामना या इच्छापूर्ति की संभावनाओं को ये शब्द अपने मे समेटे हुए है, अन्य शब्दों मे न तो ये शब्द सात्विक है न राजसिक न तामसिक बल्कि ये एक श्रेष्ठतम ‘त्रिगुणात्मक भाव शब्द’ है, यदि हम अपने आसपास की दुनिया पे एक सरसरी निगाह या सामान्य दृष्टि डालें तो हम पाएंगे के चारो ओर लगभग सभी लोग किसी न किसी वस्तु या वस्तुपरिस्तिथियों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध नज़र आ रहें हैं, किन्तु उन सभी मे जो बुनियादी भिन्नता या फर्क है, वो उनके साधना के प्रकार में है, इसे एक धर्म या दर्शन निरपेक्ष विचार से समझने का अतिरिक्त प्रयास इस तरह से करते हैं, कल्पना कीजिये एक बहुत प्रसिद्ध पहुंचे हुए फ़कीर की मज़ार पर बहुत से लोग मन्नत या दुआ मांगने के शृंखलाबद्ध प्रयासों को करते हैं, अब किसे मालूम के एक दिन या एक समय ऐसा आता है जब उनकी कुछ प्रमुख इच्छाएं या मनोकामनाएँ उनके अन्य क्षेत्रों मे दृढ़ संकल्प प्रयासों से या जाने अनजाने किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा या अन्य शब्दों मे कहें के उस पहुंचे हुए फ़कीर की कृपादृष्टि या नजरों की रोशनी या आशनाई मे ये लोग अपनी इच्छाओं या महत्वकांक्षाओं के करीब पहुँच जाते हैं या करीब से होकर गुजरने का या कई सूरतों मे उन बातों को पा लेने का ही एहसास इन्हे छू लेता है, और ये इनके लिए चमत्कार सा है, किन्तु हमारे लिए ये दोनों ही सूरतें केवल ‘साधना’ के प्रकार मात्र हैं, एक व्यक्ति की इच्छा पूरा होना उसकी आध्यात्मिक या रहस्यमयी तरीके से कई समर्पित की गयी अन्य बहुत सी इच्छाओं को किसी दिव्यता से अभिभूत होकर उसे समर्पित करने या अपनी ओर से उन कम महत्वपूर्ण मनोकामनाओं को त्याग देने का भी फल हो सकता है।

जो कुछ भी हो चाहे ये वैज्ञानिक दृष्टि से देखिये या किसी रहस्यमयी अवैज्ञानिक या छ्द्मविज्ञान मे तर्क करने की महारत रखने वाले हम जैसे लेखकों की ओर इस श्रेष्ठतम प्रश्न को सरका दीजिये, जवाब एक ही मिलेगा वैज्ञानिक चिंतन इन तमाम कामना पूर्तियों को शृंखला प्रयासों या महत्वपूर्ण प्रयासों की शृंखला का नतीजा कहेगा, किन्तु सामान्यतः ‘संशयवादी'() एवं कभी कभी आस्तिक, अवैज्ञानिक या किसी रहस्यमयी हस्तक्षेप मे यकीन रखने वाले छद्मवैज्ञानिक चिंतन को रखने वाले हम जैसे बहुत से लोग इसे ऋषियों मनीषियों या किसी उसके लिए कभी कभी या एक साधना काल मे फ़ाका रखने वाले फ़कीरों से जोड़ कर भी देख सकते हैं, और ये सही है के ऐसी सभी दृष्टियाँ संभवतः अत्यंत अवैज्ञानिक चिंतन है फिर चाहे वो किसी सामान्यतः तर्कशील व्यक्ति के लिए क्षणिक चिंतन ही क्यों न हो। अब यहाँ तक इस शब्द के गहरे मर्म को छू या कुछ तरह से देख लेने के बाद इस शब्द के भविष्योनुमुखी क्षेत्रों को भी एक सरसरी निगाह से देखते चलते हैं, पूर्व की तरह भविष्य मे भी ये शब्द अपने सभी पुराने अर्थों को समेटे हुए रहेगा, किन्तु जो चिंतन तर्कशील है, किसी एक दर्शन या संप्रदाय मतधारा तक सीमित है, जिसके लिए साधना शब्द के मायने अब तक केवल एक या एकाध भारतीय दर्शनों तक सीमित रहें हैं, वो लोग ‘योग’ ‘योगाभ्यास’ जैसे एकाध चिंतन की दृष्टि मे किए जाने वाले शृंखला प्रयासों से इतर भी इस शब्द के विस्तीर्ण उपयोग से इंकार नही करेंगे।

जैसे ‘साधना’ लगभग सभी लक्ष्यों को साधने को लेकर देखा जाने वाला शब्द है, एवं ये पूर्व की न्यायीं बहुत से लोगों के लिए जिस प्रकार एक अत्यंत सात्विक या पवित्र शब्द रहा है, ये अब वैसा भी नही रहने वाला अर्थात इसके अन्यत्र बहुतेरे प्रयोग हैं, लेकिन स्मरण रहें ये लेख किसी के लिए इस शब्द का एक पर्दाफ़ाश भी हो सकता है, जो
किसी ‘साधना’ पथ पर अग्रसर व्यक्ति को केवल श्रेष्ठ एवं मानवता के लिए हितकारी महात्मा की संज्ञाओं मे ही अब तक समेटते आएं हैं, बहुत संभव हो के कई रहस्यमयी वैज्ञानिक अवैज्ञानिक अर्थात सब तरह की सिद्धियों को प्राप्त कर लेने वाले व्यक्ति के लिए स्वार्थ, भाई भतीजावाद या भाईचारे के हित ही उन सिद्धियों की दृष्टि मे सर्वोपरि हों, जैसे ही आपका चिंतन इस परिधि को पार करता है, आप स्वतः जान जाते हैं के दर्शन, धर्म, तमाम मत, एवं उनमे समा सकने वाली सब साधनाएं एवं तपस्याएं लगभग हर तरह के शृंखलाबद्ध प्रयास एवं आपके पूर्ववर्ती सिद्धों की तमाम सिद्धियाँ एवं उनको देने वाली सब रहस्यमयी ताक़तें लगभग सब या तो कूटनीति या भूराजनीति से भी प्रभावित रहती रही हैं। हमारी तरह वो रहस्यमयी शक्तियाँ भी सर्वथा संशय मे बनी रहती हैं, और फिर आपको ये भी लग सकता है के संभवतः यही सृष्टि को रचने वाला चाहता है के मनुष्य संशय मे ही बना रहे, या फिर आपको ये भी लग सकता है के हमारी रूह या आत्मा किसी अबूझ पहेली को सुलझाने के लिए ऐसे ही तब तक संघर्षरत बनी रहेगी जब तक उसे आत्म साक्षातकार न हो जाए, या फिर आपको तमाम रूहानी किताबों मे समाया हुआ ज्ञान अपने जीवन की दिशाओं के लिए एक संदर्भ लग सकता है।

जो भी हो जब तक आपको तमाम श्रेष्ठतम प्रश्नो के उत्तर नामालूम से हों, आप साधना शब्द का प्रयोग जैसे आपका मन चाहे वैसे करें, स्मरण रहे देश काल ‘परिस्तिथी'(अर्थात आपके संपर्क पद प्रतिष्ठा आदि) वो कारक सदा सर्वदा रहते हैं, जो आपकी साधना की ‘तीव्रता'(Intensity) अर्थात आपको किसी लक्ष्य को साधने के लिए ‘साधना को उपलब्ध समय’ स्थान या भूपरिस्तिथी एवं अपने गंतव्य या मूल स्थान से दूरी आदि वो कारक हैं जो आपकी साधना की दिशा एवं दशा तय कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त कुछ साधनाएं ऐसी होती हैं, जो आप लोगों के सहयोग से अधिक तीव्र गति से प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु इसके विपरीत वो सहयोग आपको असहयोग भी महसूस हो सकता है यदि आपके व्यवहार और आपके द्वारा चुने गए सहयोगियों की इच्छाओं और साधनाओं के चुनाव मे ‘सामंजस्य'(Harmonious) या बहुत करीबी एकरूपता नही है, यहाँ ‘अंधे को अंधा रास्ता क्या बताए’ कहावत सटीक बैठती है, अन्य शब्दों मे ‘दूरदृष्टि या साधना लक्ष्यों को लेकर दूरअंदेशी'(Vision) होना अत्यंत आवश्यक है, कम से कम हरेक साधना लक्ष्य मे उस लक्ष्य के दूरअंदेशी विशेषज्ञ का होना भी आवश्यक है, दूरदृष्टि के बिना ये ऐसा है के जो खुद ही भटका हुआ है वह दूसरों का नेतृत्व क्या करेगा।

अब साधना शब्द के विस्तीर्ण संसार की इस अंतर्दृष्टि तक पहुँचने के बाद उन सभी या तमाम साधना मार्गी मनोभावों के पीछे जो मंतव्य आदि के अन्य कारक हैं जिनमे अपनी विचित्र दूरअंदेशी विलक्षणता से इतर उसे प्रभावित करने वाले नए पुराने ‘दायित्वों का बोध'(Sense of Obligations) एक अत्यंत या सबसे महत्वपूर्ण कारक है या हो सकता है, ऐसा इसलिए, क्योंकि आप कौन हैं?, आप कहाँ से आए हैं?, आपसे पूर्व वर्ती कौन कौन हैं?, आप किन्हे अपना गुरु मानते हैं?, आपकी शिक्षा दीक्षा आदि कहाँ से हुई है?, आपके शिष्य या भविष्य मे आपसे प्रभावित होने वाले साधक किन त्रिगुणों मे से एक का आधिक्य प्राप्त करते हैं?, आप दुनिया मे क्या छोड़ कर जाना चाहते हैं?, आप दुनिया से क्या क्या पाना चाहते हैं? ऐसे कई प्रश्न या जिज्ञासाओं की ‘संक्षिप्त आत्मिक सूची'(Brief Soul desires) या एक ‘व्यक्तिगत रूहानी फेहरिस्त'(Individual Soul desires) दायित्वों का बोध कहला सकती है।


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