जैसा कि हम जानते हैं के कर्म का एक विभाग भाग्य होता है, और इस भाग्य के साथ कई जन्मों की अवधारणा संलग्न है, यदि आप विज्ञान सम्मत उस चिंतन के अधीन होकर इस मत से जाने अनजाने में कुछ दूरी भी बना लें, जो विगत शताब्दियों मे प्रसिद्ध एक विज्ञानी, केवल एक विज्ञानी डार्विन के मतों से प्रभावित चिंतन है, तो भी आपको ‘विकास के सिद्धांत’ (Theory of evolution) के समकक्ष भौतिक द्वंद्वाद, या द्वंदात्मक भौतिकवाद के वशीभूत आने वाले भाग्य एवं सत्य पर निर्भर करना पड़ता है और ये भी कर्म आधारित भाग्य की एक दूसरी अवधारणा ही है, किन्तु इसमे फर्क सिर्फ और सिर्फ इतना ही है कि इस तरह के विज्ञान जनित भौतिकवादी चिंतन की सीमाएं केवल एक जन्म तक या ‘आप’ केवल एक ही बार जीते हैं और जीते जी जो कर्म करते हैं, उन्ही कर्मों की सीमाओं या अधिकार क्षेत्र मे आपके भाग्य या चरित्र की व्याख्या की जा सकती है और कुछेक रहस्यवादी या इसके समकक्ष मत परम्पराएँ भी आपके एक जीवन मे किए जाने वाले कर्मों से ही आपकी या आपके भाग्य की सात्यता को निर्धारित करने के प्रकल्प करते रहते हैं, इसके बरअक्स कुछ परम्पराएँ या मान्यताएं ऐसी भी हैं, जो मानव जीवन मे विकास के सिद्धांत की तमाम अवधारणाओं मे किसी ऐसे दखल से इंकार नही करती हैं जिसे रूह या आत्मन कहते हैं, रूह या आत्मन के सिद्धांत को मानने वाले इन मतों मे ही कहीं रहस्यवादी ज्योतिष भी या ज्योतिष विज्ञान भी समाता है, जो लोग विकास के सिद्धांत की ओर अधिक बल देकर अपने जीवन निर्वाह या भाग्य को प्राथमिकताएं प्रदान करते हैं, वे इस ज्योतिष को विगत शताब्दियों मे परंपरावादी हो गए या परंपरावादी व्यवहार कर रहे विज्ञान के सामने केवल एक ‘छद्म विज्ञान’ की परिकल्पना भर या विस्तृत विज्ञान की सीमाओं मे अभी न समा सकने वाला ऐसा ‘छद्म विज्ञान’ मानते हैं जो आज नही तो कल विज्ञान या तार्किक समाज द्वारा स्वीकार लिया जाएगा किन्तु तर्क के आभाव मे इसे अभी स्वीकार कर पाने मे वे लोग स्वयं को अक्षम पाते हैं, वैसे उनकी इस अक्षमता के पीछे जो तर्क है वो तर्क हम इस छंद मे समाहित कर चुके हैं।
आइए अब मानव चरित्र या स्वभाव की विचित्रता की ओर चलते हैं जिसका उत्तर परंपरावादी वैज्ञानिक चिंतक मनोविज्ञान की शाखाओं मे खोजते हैं, किन्तु जो लोग ज्योतिष का अध्ययन दशकों से तमाम या भिन्न दार्शनिक अवलंबों से कर रहें हैं वे लोग ये बात न केवल जानते हैं बल्कि ज्योतिष ज्ञान या इसमे समाहित रहस्य ज्ञान को जिसे द्वंदात्मक भौतिकवादी चमत्कार या ऐसी दुविधा कहते हैं जो अभी उनकी तर्क की सीमाओं मे नही समायी है किन्तु वे आनुवांशिक डीएनए या मानव डीएनए एवं मनोविज्ञान की शाखाओं मे इन प्रश्नों के उत्तर तलाश रहे हैं एवं संभवतः भविष्य मे वे ऐसे प्रश्नो को पूर्वजों के उत्तरोत्तर कर्मों से आए या प्राप्त हुए कोड के हवाले इस वृहद प्रश्न को कर अपनी पीएचडी या ज्ञान के क्षेत्र मे आने वाली अन्य उपाधियों से सम्मानित होकर जीवन यापन करते रहेंगे किन्तु मूल प्रश्न जस का तस ही बना रहेगा या मानव समाज कई सदियों तक केवल इन उपाधियों से उपजे ज्ञान को ही अंतिम सत्य के रूप मे स्वीकार कर अपनी दिन दैन्य गतिविधियों मे पूर्व की भांति ही संलग्नता प्राप्त कर्मों से अपने भाग्य को प्रगति देते रहेंगे, से इतर बहुत से ज्योतिष इसे पारेन्द्रिय अनुभवों की सीमाओं मे भी समझते हैं कि मानव चरित्र एवं मूल स्वभाव मे विचित्रता का राजकीय व्यवस्थाओं से या दार्शनिक परिवर्तनों के दशकों या कई दफ़े सहस्त्राब्दियों मे होने वाले परिवर्तन से कोई सीधा संबंध नही है, ऐसे संबंध केवल रूह या आत्मन पर पड़ने वाले तात्कालिक आलंबन या झुकाव मात्र हैं, दशकों के अध्ययन मे वे ये भी जान जाते हैं कि शायद ज्योतिष मे आने वाली मानव स्वभाव की व्याख्याएँ सीमित हैं एवं विकासमान या ग्रहों की प्रगति पथ की भांति ही ज्योतिष ज्ञान को अतिरिक्त अनुसंधान की भी आवश्यकता पड़ती है, और नयी व्याख्याएँ इसमे समाहित होती रहती हैं एवं पूर्व की व्याख्याओं मे सुधार परिवर्तन या कई दफ़े कुछ व्याख्याओं के त्याज्य की आवश्यकता भी बनी रहती है, किन्तु विज्ञान की ही भांति इसमे दृष्टि या दर्शन के वे मूल या आकाशीय तत्व बने रहते हैं जैसे स्वभाव की व्याख्या के लिए आकाश को विभाजित की जाने वाली गणना मे बहुत अधिक परिवर्तन कई सहस्त्राब्दियों तक भी न किया जाए तो जो गणना के लिए उपलब्ध नक्षत्र हैं उनको मद्देनजर रखते हुए जो विभाजन व्याख्याएँ पहले से मौजूद हैं वे सामान्यतः पर्याप्त हैं।
अभी तक इस लेख मे हम ये जान चुके हैं कि गूढ़ मानव स्वभाव की व्याख्या करने मे सक्षम ज्योतिष और ‘मनोविज्ञान की तमाम शाखाओं का समन्वय’ न्यूनाधिक दोनों ही मनोविज्ञान अपने प्रगति पथ पर अग्रसर हैं और कौन सा विषय अधिक सटीकता से व्याख्या कर सकता है ये पूर्णतः जिस व्यक्ति, वस्तु परिस्थिति या व्यक्ति समूह को व्याख्या की आवश्यकता है उसके सहज ज्ञान एवं उसे व्याख्या से प्राप्त स्वीकार्यता पर निर्भर करता है,अब ये स्वीकार्यता और सहज ज्ञान भी अपने आप मे एक वृहद विषय प्रश्न हैं, किन्तु अभी हम अपने मूल प्रश्न पर रहते हुए ही इस लेख मे आगे बढ़ेंगे कि मानव चरित्र या स्वभाव की विचित्रता को ज्योतिष मे कैसे देखा जा सकता है, ज्योतिष मे भी कई विधाएँ हैं जो मानव स्वभाव की विचित्रता एवं भाग्य की व्याख्या करने मे अपनी तरह से सक्षम हैं किन्तु दार्शनिक दृष्टि का आलंबन लेते हुए हम इसे उन विषयों की एकजुटता या गणना के उपरांत विभाजन तक सीमित रखते हुए केवल सत्ताईस या अट्ठाइस नक्षत्रों मे समाने वाली वे सभी व्याख्याएँ एवं ग्रह दृष्टियाँ, भाव दृष्टियाँ, ग्रह युतियाँ एवं इन संक्षिप्त से व्यापक विभाजन जैसे बारह राशियों मे समाहित मूल स्वभाव चरित्र व्याख्याओं को लेकर ही अभी यहाँ प्रतिबद्ध हैं, और एकाध दशकों मे इन व्याख्याओं के अध्ययन के उपरांत हमने ये पाया है के एक ‘देश काल परिस्थिति’ मे मानव स्वभाव की विचित्रता एवं विलक्षणता उस देश काल परिस्थिति मे व्याप्त राजकीय व्यवस्था न्यायिक व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से चलाने या बनाए रखने के लिए जिन सूचनाओं या अधिसूचनाओं पर निर्भर है वे सभी तात्कालिक ज्ञान या अधिकांशतः द्वंदात्मक भौतिकवाद से उपजे मनोविज्ञान पर निर्भरता लिए हुए है, ऐसे मे किसी भौतिक दृष्टि मे जो सही या गलत है उसकी व्याख्या ज्योतिष आदि विषयों मे पायी जाने वाली मानव स्वभाव की न्यायिक व्याख्याओं से इतर है।
अर्थात एक ज्योतिष एवं तमाम दर्शन आधारित व्याख्याओं की सीमाओं मे ज्योतिष पर दृष्टि रखने वाले साथ ही संशयवादी व्यक्तित्व को बनाए रखने वाले एक साधारण व्यक्ति की दृष्टि मे मानव स्वभाव पर आप नए अनुसंधान न्यायिक प्रणालियों मे सुधार एवं किसी भी राजनैतिक दर्शन के प्रभाव मे किए जा सकने वाले सभी वैधानिक बदलावों से भी मानव स्वभाव की विलक्षणता, विचित्रता एवं सात्यता या ‘कई संदर्भों की’ संभवतः ज्योतिष मे समाने वाले कुछ संदर्भों की दृष्टि मे जन्मों की धूर्तता, लोभ आदि को परिवर्तित करने मे अधिक सफलता प्राप्त नही कर सकते मानव स्वभाव मे कुछ गुण एवं आत्मिक मान्यताएं उन्हे फिर फिर कहीं न कहीं से प्राप्त हो ही जाएगी और रूह या आत्मन फिर फिर या पुनः वैसे ही व्यवहार का आचरण करती प्रतीत होगी, उदाहरण स्वरूप द्वंदात्मक भौतिकवाद की दृष्टि मे संभवतः आदिम काल के उपरांत जब भी सभ्यता का विकास हुआ तब से वेश्यावृत्तिः या इस तरह के स्वभाव के अपभ्रंश, व्यभिचार के तमाम प्रकार, दास प्रथाओं के तमाम प्रकार आज भी मौजूद हैं या आज भी तमाम ऐसी सांस्कृतिक विद्रूपताओं को मानव स्वभाव मे देखा जा सकता है जो बहुतों के लिए असहज किन्तु समाज के बहुत से वर्गों मे सहस्त्राब्दियों से स्वीकार्यता प्राप्त किए हुए है, इसी प्रकार तमाम सम्बन्धों, सह सम्बन्धों मे मिलने वाली विसंगतियों को भी आप सत्ताईस नक्षत्रों या बारह राशियों की सीमाओं मे देख सकते हैं। एक अन्य दृष्टि ये भी है कि जिसे आप विसंगति या विरोधाभास समझते हों वो किसी अन्य सामाजिक संकल्पना मे अत्याधिक मान्यता प्राप्त एक स्वीकार्य तथ्य या सत्य हो, अन्य शब्दों मे ज्योतिष मे व्यक्ति के स्वभाव की सीधी आलोचना के बजाय ये स्वीकारा जाता है के क्यों कोई व्यक्ति किसी काम मे निपुण है और किसी काम मे उसे सहजता प्राप्त करने मे अत्यंत श्रम अनुभव एवं अनुसंधान की सतत आवश्यकता बनी रहती है। कुल मिलाकर कोई भी प्रबुद्ध ज्योतिष राजकीय व्यवस्थाओं या ‘तमाम देश काल परिस्थितिजन्य’ संविधानों की सीमाओं मे मानवों या मानव स्वभावों के प्रति एकात्म दृष्टि का भाव रखते हैं वो एक ज्योतिष दृष्टि कभी स्वीकार नही कर सकती क्योंकि ज्योतिष दृष्टि जन मानस को एक मत या मताधिकारों की सीमाओं मे समाहित मत समूहों के खांचों मे बांधने की बजाय उन्हे दूसरी तरह के खाँचो या मनो विभागों मे विभाजित करके देखती है, हालांकि वो दृष्टि भी अपनी तरह से सम्यक दृष्टि है किन्तु एक प्रबुद्ध ज्योतिषविद के आगे एक सामान्य से दिखने वाले मानव के कई रहस्य उद्घाटित हो जाते हैं, और तब मामला धन के आधार पे, या बल के आधार पर या किसी भ्रम के आधार पे ज्योतिष की दृष्टि मे एक सत्य किन्तु किसी वैधानिक दृष्टि प्राप्त व्यक्ति की दृष्टि मे ऐसा असहज सत्य जिसे वो साम दाम दंड भेद आदि के माध्यम से झुठला देने का सामर्थ्य रखते हुए भी ज्योतिष के आगे वैसे ही झुठला नही सकता जैसे एक डाक्टर के आगे रोगी अपने रोग की सत्यता को झुठला नही सकता।
हो सकता है अभी तक इस लेख मे इन छंदो को दो या तीन बार पढ़ लेने के बावजूद आप इसके मर्म तक ना पहुंचे हों और पाठक अब तक लेख मे प्रयुक्त ‘शब्दावली'(Terminologies) जैसे ‘द्वंदात्मक भौतिकवाद’ जैसे शब्दों को प्रथम दृष्टिया आत्मसात न कर पाएँ हों, तो ऐसे मे इस लेख का एक हिस्सा या छंद निष्कर्ष के रूप मे लिखना अनिवार्य हो गया है। ये लेख मानव स्वभाव के बारे मे लेखक को संभव हुए अब तक के ज्ञान एवं तमाम दर्शन एवं मनोविज्ञान आदि एवं उन विषयों को यहाँ लिए गए मूल विषय ‘ज्योतिष’ मे एक प्रश्न को लेकर समाहित करता है, वो प्रश्न है, क्या जटिल मानव स्वभाव को किसी भी मनोविज्ञान संज्ञक विषय मे अब तक समाहित किया जा सका है या नही, तो लेखक इसका उत्तर इस लेख से देता है के संभवतः हाँ एक विषय है, ‘यदि आप चाहें’ (आपकी इच्छा सर्वथा स्वतंत्र है) तो ज्योतिष जैसे विषय का आलंबन ले सकते हैं, हालांकि इस विषय का आलंबन लेने के बाद भी आपकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, ‘आपकी देश काल परिस्तिथियाँ'(Your beliefs and geopolitical presence and it’s history) वो घटक तत्व हो सकते हैं जो आपको इस विषय पर आवश्यक आस्था बनाने से पहले घोर संशयग्रस्त किए रख सकते हैं, और उस तरह के संशय अपने आप मे एक वृहद लेख या नयी पुस्तकों को लिखने के लिए पर्याप्त प्रश्नो को समेटे हुए हो सकते हैं, ऐसे मे यदा कदा यहाँ वहाँ अपने जिज्ञासु मन को लेकर घूमने से पहले आप दुनिया मे किसी भी ज्योतिष विशेषज्ञ या कम से कम एक दशक के अनुभवी ज्योतिष से मिलकर अपने वे प्रश्न इस लेख को संदर्भ देकर अवश्य करें, अन्यथा देश काल परिस्तिथियाँ एवं आपकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मे पायी जाने वाली अनेक विसंगतियाँ आपको कई वर्षों तक भी घोर भ्रमित किए रख सकती हैं, संभवतः ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्रश्न मानव जीवन के इतिहास मे न केवल दर्शन आदि विषयों एवं ज्योतिष आदि रहस्य विषयों के लिए भी सबसे बड़े उन अबूझ प्रश्नो की श्रेणी मे हैं, जिन्हे आवाम या जन सामान्य के लिए कदापि ‘सामान्यीकृत'(Generalized) नही किया जा सकता है, अर्थात ये व्यक्ति विशेष तक या उसकी विचित्रता तक सीमित रहने वाले निज धर्म या निज सत्य से जुड़ा ऐसा प्रश्न है, जिसे कोई गुरु महात्मा, पादरी, मौलवी, आदि इत्यादि भी कभी ‘सामान्यीकृत'(Generalized) नहीं कर पाए हैं और न ही ‘सामान्यीकृत'(Generalized) कर पाएंगे, ऐसे मे जिज्ञासु के लिए विशेषज्ञ परामर्श अत्यंत आवश्यक हो जाएगा।
इसी क्रम मे यदि आप थोड़ा ध्यान दें तो पाएंगे कि लेखक ने इसे किसी जन सामान्य के लिए उपलब्ध पत्रिका या वैबसाइट आदि पर इसे नही छापा है, अपितु इसे केवल ज्योतिष विषय से संबंधित एक पुरानी या प्रबुद्ध वैबसाइट के माध्यम से ही आपके सम्मुख किया है, अर्थात ये केवल एक विषय से संबंधित रुचि वाले लोगों का ध्यान रखते हुए भी लिखा गया है, ऐसे मे यदि आप गाहे बगाहे इधर उधर से गुजरते हुए इसे अपनी राजनीतिक विषयों की रुचि मे समेटना चाहते हैं तो विषय का ज्ञानभाव आपको अवसाद ग्रस्त या पीड़ित कर सकता है।
इस सूचना के अतिरिक्त एक बात और कि किसी विषय विशेष की दृष्टि मे, हजारों वर्षों के अवलोकन उपरांत एक सत्य संज्ञक ज्ञान प्राप्त होता है, और ऐसा सत्य तब तक सत्य ही रहता है जब तक वो किसी नए अनुसंधानपरक सत्य या तथ्यों के द्वारा खंडित न कर दिया जाए, फिर चाहे ऐसे अवलोकन आधारित सत्य या अनुभव लेखक, अनुसंधानकर्ता के अपने समाज, परिवार या किसी बेहद नज़दीकी, या किसी ऐसे व्यक्ति विशेष के जीवन अनुभव से होकर ही क्यों न गुजरा हो जो ऐसे अवलोकन या अनुसंधान मे प्रतिभागी रहे हों।
कई मर्तबा आप ये भी पाएंगे के ज्योतिष नजूमी आदि की श्रेणी मे आने या समाने वाले सभी सत्य या तथ्यों के प्रकार इन विषयों के लेखक पर भी कहीं बहुत नज़दीक से होकर गुजरे होते हैं, अर्थात चरित्र या स्वभाव मे बहुत से ऐसे तत्व हो सकते हैं जो न्यूनाधिक सब मे पाए जा सकते हैं किन्तु उन्हे नज़दीक से देखने का सामर्थ्य किन्ही कारणों से लेखक सहेज पाता है, फिर चाहे आप किसी सदी मे किसी देश काल परिस्थिति मे राजा, महाराजा, सम्राट, बादशाह, नेता, अभिनेता आदि इत्यादि कुछ भी रहे हों।
यदि आप सामान्य इतिहास भी पढ़ें तो ऐसे तमाम तथ्य अवश्य पाएंगे कि ‘चरित्र की शुभता, अशुभता, उच्चता या न्यूनता का इससे कोई भी लेना देना किसी भी समय नही रहा है कि आप कितने प्रबुद्ध, किसी विषय के विद्वान या कितने धनी, बली व्यक्ति हैं, या आप कितने बड़े घराने से तालुक्क रखते हैं, या आप किस ख़ानदान से हैं, या आप किस जाति समुदाय या धर्म से आते हैं, आपका जन्म जायज़ है या नाजायज़, आप किसी के वारिस हैं या फिर लावारिस हैं, बहुत दफ़े तो ऐसा देखने मे आता है के चारित्रिक समस्याएँ वहीं सबसे अधिक पायी जाती हैं जहां किसी तरह की कुलीनता या शालीनता की भ्रामक व्यवस्था हो इसके बरअक्स कई दफ़े मान्यताओं के विपरीत श्रेष्ठतम चरित्र वहाँ से निकलते देखे जाते हैं जो तथाकथित समाज की दृष्टि मे निम्नतर अपमानित एवं सर्वथा निंदनीय मानवीय जीवन की व्यवस्थाएं हैं, इसके पीछे केवल एक ही कारण दिखाई देता है और वो ज्योतिष मे छिपे वो रहस्य जो दर्शाते हैं कि ऊंचे घरानों या जायज़ ख़ानदान के बावजूद कोई जातक नए नाजायज़ समाज की रचना करने मे अग्रसर रहेगा और धन बल एवं ख़ानदान होने के बावजूद चारित्रिक न्यूनता की पराकाष्ठाओं को प्राप्त करेगा, हालांकि ऐसा भी देखने मे आता है कि किसी तरह का शक्ति समुच्चय आपके हाथ मे होने से पूरी दुनिया या वृहद समाज की भाग्य दिशाएँ इतिहास के किसी कालखंड मे निर्धारित हो सकती हैं, फिर भी आपके चरित्र या स्वभाव की ज्योतिष सत्यता जस की तस बनी रहेगी, जो किसी ‘चारित्रिक लकीर'(Scale for measuring character shades of individuals) के एक किनारे से दूसरे किनारे पर कहीं भी हो सकती है, और ऐसे पैमाने या लकीर आप अपने अपेक्षित समाज या मान्यताओं की सहूलियत मे नए सिरे से भी बना सकते हैं, किन्तु ज्योतिष मे इसे लेकर अपनी तरह की धारणाएं हैं, जो इस भाषा के मर्मज्ञ या सभी ज्योतिष विद स्वीकारते हैं, ऐसे मे जटिल मानव स्वभाव के बारे मे केवल कुछेक तथ्यों या ज्योतिषीय संकल्पनाओं के आधार पर किसी अनुमान पर स्वयं न पहुंचे, हो सके तो ऐसे विषयों पर मंथन के लिए किसी जानकार की सहायता लें, यदि चाहें तो हमें भी कमेंट बॉक्स मे जन्म तिथि, समय एवं जन्म स्थान आदि लिखकर भेज सकते हैं और सरसरी या सतही जानकारी संक्षेप मे भी प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु यदि निजता प्राथमिकता है तो आप हमे इस वैबसाइट के सोसल मीडिया या ईमेल के माध्यम से पत्राचार भी कर सकते हैं, आपके उत्तर उसी समय देना संभव नही होगा किन्तु समय मिलने पर उनका जवाब अवश्य लिखा जाएगा।
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